एग्री स्टार्ट अप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट : 400 युवाओं और स्टेक होल्डर्स की उमड़ी भीड़

डॉ. कर्नाटक आर.सी.ए. के नूतन सभागार में आयोजित ’एग्री स्टार्टअप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट’ विषयक कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।

Aug 31, 2024 - 00:50
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एग्री स्टार्ट अप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट : 400 युवाओं और स्टेक होल्डर्स की उमड़ी भीड़
एग्री स्टार्ट अप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट : 400 युवाओं और स्टेक होल्डर्स की उमड़ी भीड़

उदयपुर। आजादी के बाद भारत ने न केवल आज अनाज उत्पादन बल्कि फल, दूध, मछली और अण्डा उत्पादन में नए कीर्तिमान हासिल कर विश्व में शीर्ष स्थान पर नाम दर्ज कराया है। अब सर्वोत्तम समय है कि कृषि शिक्षा से जुड़े युवा वैल्यु एडीशन (मूल्य संवर्द्धन) कर धनोपार्जन की दिशा में अपना ध्यान लगाए। युवाओं को नौकरी के पीछे नहीं भागना है, बल्कि नौकरी देने वाला बनना होगा तभी भारत की अर्थव्यवस्था में आशानुरूप बढ़ोतरी संभव है। यह आह्वान महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने सोमवार को संभाग भर से आए कृषि छात्र-छात्राओं और युवा उद्यमियों से किया।

डॉ. कर्नाटक आर.सी.ए. के नूतन सभागार में आयोजित ’एग्री स्टार्टअप स्टेक होल्डर्स कनेक्ट’ विषयक कार्यशाला को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंध संस्थान (मैनेज) हैदराबाद की ओर से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में उदयुपर, भीलवाड़ा, बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर के विभिन्न महाविद्यालयों में कृषि शिक्षा ग्रहण कर रहे 400 छात्र-छात्राओं के अलावा शोधकर्ताओं, इनक्यूबेटरों, नीति निर्माताओं, कृषि उद्यमियों, स्टार्टअप, कृषि उद्योगों, हितकारक निवेशकों एवं विस्तार कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। कार्यशला का उद्देश्य कृषि व्यवसाय और कृषि उद्यमिता पर अपने नवाचारों, विचारों, विशेषज्ञता और अनुभवों को साझा करना है।

डॉ. कर्नाटक ने कहा कि एक समय था जब हम आयातित लाल अनाज खाने को मजबूर थे लेकिन हरित क्रांति, श्वेत क्रांति के बाद हमारे वैज्ञानिकों ने मुख्य फसलों से हटकर बागवानी, मत्स्य, पशुधन, अंडा उत्पादन के क्षेत्र में विलक्षण परिणाम दिए हैं। आज हमारे देश में अनाज उत्पादन 329.50 मिलीयन टन है तो फल उत्पादन 355.05 मिलीयन टन पहुंच चुका है। इसी प्रकार दूध उत्पादन 230 मिलीयन टन व मछली का उत्पादन 17.54 मिलीयन टन हो चुका है। यानी भारत विश्व के अग्रणी देशों में खड़ा है और निर्यात भी कर रहा है। आज एग्री स्टार्ट अप का समय है। भारत सरकार ने तीन सौ करोड़ का फण्ड बनाया है, ताकि युवा अपना स्टार्ट अप के सपने को मूर्त रूप दे सके। नाबार्ड जिला उद्योग केन्द्र और अन्य संस्थाओं के माध्यम से 5 से 25 लाख रूपए का ऋण युवाओं को दिया जा रहा है ताकि वे कृषि के क्षेत्र में नवाचार को मूर्त रूप देते हुए स्टार्ट अप आरंभ कर सके।

डॉ. कनार्टक ने युवाओं को स्टार्टअप के सात मूल मंत्र लक्ष्य, हितधारकों की समझ, संवाद, सहयोग, तालमेल, प्रशंसा आदि गिनाते हुए बताया कि इन सबसे ऊपर लागत और लाभांश को बांटना जरूरी है। डॉ. कनार्टक ने कहा कि आज देश में 730 से ज्यादा कृषि विज्ञान केन्द्र कार्यरत है जहां कृषि से जुड़ी हर गतिविधि बेहतर मार्गदर्शन में संचालित है। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि आज का युवा स्टार्ट अप का नाम आते ही शब्दकोष या गूगल में तलाशता है, लेकिन नवाचारों को धरातल पर उतारने का सशक्त माध्यम सटार्टअप है। स्टार्ट अप वहीं कर सकता है जिसके पास खोने को कुछ भी नहीं है या सबकुछ खो देने का जज्बा रखता है। आज के युवा में ये दोनों ही गुण निहित है इसलिए अपने सोच और विचार को मूर्त रूप देकर समाज के भले के लिए काम करें। वर्ष 2014-15 से पूर्व देश में कृषि आधारित 50 से कम स्टार्ट अप थे, जो आज बढ़कर 700 से ज्यादा हो गए हैं। राष्ट्रीय कृषि योजानान्तर्गत सर्वाधिक 226 स्टार्ट अप महाराष्ट्र में है। राजस्थान में फिलहाल 66 स्टार्ट अप ही है लेकिन गुंजाइश खूब है।

केले के अपशिष्ट से चमड़ा, कपड़ा व आभूषण निर्माण

कार्यक्रम के अध्यक्ष राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) हैदराबाद के निदेशक डॉ. एस.राज. ने कहा कि ’मैनेज’ एक स्वायत्त कृषि शिक्षा संस्थान है जो अनुसंधान के साथ-साथ एग्री बिजनेस से जुड़े कई पाठ्यक्रम कराता है। संस्थान का उद्देश्य कृषि अर्थव्यवस्था में विस्तार अधिकारियों, प्रबंधकों, वैज्ञानिकों और प्रशासकों को प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल प्रदान करना है।
 
उन्होंने कहा कि कृषि एक विंहगम विषय है जहां हर कदम पर एग्री स्टार्ट अप की विपुल संभावनाएं है। दक्षिण में युवा उद्यमियों ने इस कार्य को समझा और केले के अवशेषों से कपड़े चमड़ा आदि बनाने का काम कर रहे है। यही कृषि के अपशिष्टों व फूलों के बीज आदि से चित्ताकर्षक आभूषण बनाने का काम किया जा रहा है। 
विशिष्ट अतिथि पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय बीकानेर में डीन डॉ. बी.एन. मेशराम ने कहा कि मौजूदा समय एग्री स्टार्ट अप का है। कृषि में पशुपालन को भी साथ में रखें तो देश की तरक्की को आगे ले जाने से कोई रोक नहीं सकता। युवा सपने देखता है तो साकार भी कर सकता है। मुर्गीपालन सहित कृषि के विभिन्न संकायों मेें स्टार्ट अप की विपुल संभावनाएं है। कृषि में हर चीज पुनर्चक्रित होती है, जहां स्टार्ट अप की असीम संभावनाएं है।

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक डॉ. भूरालाल पाटीदार ने कहा कि उनके कार्याधीन, कृषि संभाग के पांच जिले उदयपुर, बांसवाड़ा, डूगंरपुर, प्रतापगढ़, सलूम्बर में खरीफ में लगभग 8 लाख हैक्टेयर में बुवाई होती है। सर्वाधिक 3.82 लाख हैक्टेयर में मक्का बोई जाती है, लेकिन अपेक्षित पैदावार बढ़ाने की खूब गुंजाइश है। पाटीदार ने कहा कि बांसवाड़ा में तो तीनों ऋतुओं में मक्का की खेती होती है। मक्का के सर्वाधिक उत्पाद बनते हैं। उनहोंने महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति से मक्का आधारित प्रोसेसिंग इकाई लगाने का अनुरोध किया। इस मौके पर उन्होंने किसानों को राज्य सरकार की ओर से संचालित विभिन्न योजनाओं और उनमें मिलने वाले अनुदान की जानकारी दी।
वशिष्ठ वैज्ञानिक एवं बड़गांव कृषि विज्ञान केन्द्र प्रभारी डॉ. प्रफुल भटनागर ने कहा कि देश में रोजगार की कमी है। ऐसे मे गांव में उपलब्ध सामग्री-सुविधाओं को समाहित कर नया स्टार्ट अप किया जा सकता है। बकरी-पालन, मुर्गीपालन, सुअर पालन, गौपालन में सरकार की एकाधिक योजनाएं संचालित है जहां अनुदान के साथ-साथ छुट भी मिलती है। जिला विकास प्रबंधन नाबार्ड श्री नीरज यादव ने युवा छात्र-छात्राओं को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि कृषि में स्टार्ट अप में परेशानी है तो संभावनाएं भी भरपूर है। यदि आपके पास आइडिया है और सॉल्युशन है तो नाबार्ड 5 से 25 लाख रूपए तक मदद कर सकता है। कृषि तंत्र से जुड़े युवा नेब वेंचर एप के सहयोग से स्टार्ट अप कर सकते हैैं। नाबार्ड न केवल स्टार्ट अप बल्कि कोल्ड स्टोरेज, गोदाम आदि निर्माण के लिए भी आर्थिक मदद करता हैं।
आरंभ में डीन कृषि महाविद्यालय डॉ. आर. बी. दुबे ने स्वागत किया जबकि ’मैनेज’ के श्री सिद्धार्थ अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम मंें निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय डॉ. आर.ए. कौशिक, राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण ब्यूरो के प्रभारी डॉ. बी.एल. मीणा, डीन धृति सौलंकी, सहनिदेशक बीज डॉ. हेमलता दाधीच, ओएसडी डॉ. वीरेन्द्र नेपालिया, डॉ. कपिल देव आमेटा आदि उपस्थित थे। संचालन प्रो. डॉ. लतिका व्यास ने किया।

गेहूं छोड़ ’न मक्की खाणों, मेवाड़ छोड़ ’न कठैई नी जाणों

आगामी दशक में मक्का होगी सबसे महंगी फसल


उदयपुर। ’गेहूं छोड’़ न मक्की खाणों, मेवाड़ छोड’़ न कठैई नी जाणों’ मेवाड़ में मक्का मोह को रेखांकित इस कहावत को कुलपति डॉ. अजीत कुमार कनार्टक ने उद्दत करते हुए कहा कि आगामी एक दशक में मक्का सबसे महंगी और मुनाफे वाली फसल होगी।
कृषि विभाग की ओर से मक्का आधारित प्रसंस्करण लगाने की बात पर कुलपति डॉ. कनार्टक ने कहा कि मक्का को आंरभ में सिर्फ पशु चारे के लिए बोई जाती थी। बाद मेें मक्का खाने में प्रयुक्त होने लगी। इसके बाद स्वीट कॉर्न, पोप कॉर्न से होकर बेबी कॉर्न जैसी दुर्लर्भ व महंगी मक्का पैदा होने लगी।

अब मक्का ने एक और लंबी छलांग लगाई जहां इससे जर्म ऑयल पैदा किया जा रहा है जो सर्वाधिक महंगा और मानव स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायी है। मक्का का सफर यहीं खत्म नहीं होता बल्कि मक्का से स्टार्च और इथनॉल तक बनने लगा है जो पेट्रोल के विकल्प के रूप में सामने होगा।
मेवाड-़वागड़ में मक्का प्रमुख फसल व खाद्यान्न है। अगले दशक में इसकी मांग में बेतहाशा इजाफा होगा जिसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। उन्होंने खासकर मक्का आधारित स्टार्ट अप को प्रभावी बनाने के लिए सबसे पहले गुणवत्ता, पैकजिंग, उत्पाद के प्रमाणी करण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का विवरण भी अंकित होना जरूरी बताया। उन्होंने नाबार्ड अधिकारी से किसानों, युवा, उद्यमियों को देय़ ऋण व योजनाओं से संबंधित पेम्फलेट वितरित करने को कहा।
Mamta Choudhary Admin - News Desk