विपदा में भी कोई साथ न था
जिसे अपना कहूं ऐसा कोई मेरे पास न था
हुआ मायूस , मैं घबराया भी बहुत
खुदसे यही पूछता मेरा दुख सुनेगा कौन
कौन है जो मुझे अंधेरों से उजालों में लेके जाएगा
कौन है जो मुझमें जीने की नई चाह जगाएगा
क्या कोई है जो दिलासा दिलाए के में हूं तुम्हारे साथ
तभी एक आवाज आई मन के भीतर से
मन -"मैं , मैं हूं तुम्हारे साथ ,
मैं बनूंगा तुम्हारा रक्षक तुम्हारा सारथी "
अचंभे से सवाल एक मैने पूछा कौन ? कौन? मैंने पहचाना नहीं
देख अपने मन की गहराइयों में एक बार वो जिसे तू खोज रहा है वो तेरे अंदर ही तो है
तेरा आज तेरा कल तेरा साहस तेरी प्रेरणा सब तू ही तो है
भूल गया वो दिन कैसे खुदको संभाला था
लाख दुखो में भी खुदको कितना सहनशील बनाया था
हां सब कुछ याद है मुझे , कुछ भी भुला नहीं मैं
कि किस तरह हजार उलझनों में भी रुका नहीं मैं
पर आज जो दर्द महसूस हो रहा है कुछ और है ये
क्या कहूं किससे कहूं के क्या है ये
कतरा कतरा जीने की चाह में मैं रोज़ मर रहा हूं
सोचता हूं कभी कभी के में मैं ये कैसी जिंदगी जी रहा हूं
मन " जानता हूं मैं आसान नहीं है इतनी बहादुरी दिखा पाना
इतने दुखो में भी खुशी की एक वजह ढूंढ पाना
सब कुछ सुनते हुए भी चुप होजाना
पर होंसला रख, थोडा सा सबर कर
जो तू चाहता है वही होगा आज नहीं तो कल जरूर होगा
बस तू विश्वास रख खुद पर ,
फैसला अदा तेरे हक़ में ही होगा
तो क्या हुआ बार बार तकदीर आजमा रही है,
तेरी हिम्मत के आगे शायद वो भी इठला रही है
बन तू बहते पानी सा, हर सांचे में ढल जा |
स्वीकार कर हर चुनौती को और बेखौफ बन जा |
आज किसी और के लिए नहीं खुदके लिए कुछ कर जा | "
वत्सला गौड़
उदयपुर (राजस्थान)