भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित हुई विचार गोष्ठी

May 11, 2022 - 21:14
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भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित हुई विचार गोष्ठी

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित हुई विचार गोष्ठी

इतिहास साक्षी है कि परतंत्र देश की संतति और संस्कृति दोनों नष्ट हो जाती हैं। एक हज़ार वर्ष की परतंत्रता के बाद भी भारत की संतति- संस्कृति नष्ट नहीं हुई, यह अंग्रेजों के लिए हमेशा चिंता का विषय रहा । अंग्रेजों ने यह काम लॉर्ड मैकाले के माध्यम से किया। जिसने हमारी शिक्षा पद्धति, वेद -गुरु-आश्रम परंपरा , संस्कृति और संस्कृत पर प्रहार किया। स्वतंत्रता आंदोलन के समय अंग्रेज संस्कृत समझते नहीं थे और संस्कृत भारत के सभी क्षेत्रों में बोली, पढ़ी और समझी जाती थी। यही कारण है कि संस्कृत पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम में संवाद- संपर्क सेतु के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई । 

यह विचार केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य विभाग के आचार्य और संस्कृत मनीषी प्रोफेसर रमाकांत पांडेय ने भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की वर्षगांठ के अवसर पर राजस्थान संस्कृत अकादमी में आयोजित विचार गोष्ठी 'क्रांति नाद की स्मरणाञ्जलि' में व्यक्त किए। यह गोष्ठी कला एवं संस्कृति विभाग तथा राजस्थान संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गयी।

इस अवसर पर अतिरिक्त निदेशक सूचना एवं जनसंपर्क विभाग गोविंद पारीक ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अनेक राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक,सैनिक एवं आर्थिक कारण थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी द्वारा किया जा रहा किसानों का आर्थिक शोषण भी एक प्रमुख कारण बना लेकिन सैनिक असन्तोष तात्कालिक कारण था। मंगल पाण्डे अपने प्राणों की आहुति देकर आजादी के प्रथम संघर्ष के नायक बने। उन्होंने कहा कि तत्कालीन रियासतों ने इस संघर्ष में अगर अंग्रेजों का साथ नहीं दिया होता तो भारत वर्ष को 90 वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से बचाया जा सकता था। उन्होंने प्रथम आजादी संघर्ष के नायकों से प्रेरणा लेकर राष्ट्रीय एकता और अखंडता को अक्षुण्य बनाये रखने को सदैव प्राथमिकता देने की आवश्यकता प्रतिपादित की।

स्वतंत्रता आंदोलन में राजस्थान की भूमिका का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ पत्रकार गुलाब बत्रा ने कहा कि नमक आंदोलन का श्रीगणेश पचपदरा (बाड़मेर) में नमक व्यापारी गुलाब चंद सालेचा ने किया । जबकि देशव्यापी नमक सत्याग्रह 1930 में महात्मा गांधी ने शुरू किया । सालेचा ने भारत की आर्थिक संप्रभुता को चुनौती देने वाले अंग्रेजी साम्राज्य को नमक आंदोलन के माध्यम से देशव्यापी चुनौती दी ।

गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए डॉ. प्रणु शुक्ला ने कहा, फ़िराक़ गोरखपुरी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए पंक्तियां लिखी थी ,"देख रफ़्तार-ए-इंक़लाब 'फ़िराक़', कितनी आहिस्ता और कितनी तेज़"। उन्होंने कहा कि प्रथम भारतीय स्वाधीनता संग्राम भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। 10 मई 1857 को मेरठ में उगा यह सूर्य धीरे-धीरे संपूर्ण भारत को आच्छादित कर लेता है और यह क्रांति लगभग 2 साल तक चलती है। तांत्या टोपे , महारानी लक्ष्मी बाई, बहादुर शाह ज़फर, नानासाहेब देशमुख, आउवा के ठाकुर खुशाल सिंह चंपावत, लगभग सभी क्रांति के वीर शहीद कहे जा सकते हैं। 28 मई 1857 को राजस्थान में आकर यह क्रांति की ज्वाला और भड़क जाती है। कोटा में छावनी नहीं होने पर भी विद्रोह हुआ। रोटी और कमल इस क्रांति के प्रमुख प्रतीक चिन्ह थे। इस विद्रोह को पुरजोर दबाया गया। अगर ऐसा नहीं होता तो हमें और 90 वर्ष तक अंग्रेजों की दासता सहन नहीं करनी पड़ती।

गोष्ठी का संचालन कला एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त शासन सचिव ओझा ने किया। विभाग व अकादमी की ओर से अकादमी सचिव श्री संजय झाला ने धन्यवाद ज्ञापित किया।